कानपुर । वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए इसे दस्तक अभियान का भी हिस्सा बनाया गया है। पहली बार दस्तक अभियान के दौरान घर-घर टीबी मरीज ढूंढे जाएंगे। यह अभियान 10 मार्च को शुरू होगा और 24 मार्च तक चलेगा।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अनिल मिश्रा ने कहा कि पहली बार दस्तक अभियान में टीबी रोगियों को खोजने की जिम्मेदारी आशा एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को दी गई है। बुखार के रोगियों, क्षय रोगियों के साथ जन्म-मृत्यु पंजीकरण से वंचित लोगों, कुपोषित बच्चों और दिमागी बुखार से दिव्यांग हुए लोगों की सूची तैयार भी तैयार करने को कहा गया है।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. एपी मिश्रा ने बताया कि अभियान के दौरान लक्षणों के आधार पर आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संभावित टीबी रोगियों का पता लगाएंगी। ऐसे रोगियों की जानकारी हेल्थ वर्कर एएनएम के माध्यम से ब्लॉक मुख्यालय तथा एनटीईपी स्टाफ को देंगी। सूचना के आधार पर जांच कराकर टीबी रोगी का निशुल्क इलाज कराया जाएगा।
क्षय रोग के जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना के मुताबिक वर्ष 2017 से ही दस्तक अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन बार इसमें टीबी को भी जोड़ा गया है। उन्होंने बताया कि दस्तक अभियान के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा टीबी रोगी ढूंढे जा सकेंगे। क्योंकि इस अभियान का दायरा जिले के हर घर तक है।
साथ ही बताया कि आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बुखार के रोगियों को ढूंढने के साथ-साथ टीबी के लक्षण वाले रोगियों को ढूंढेगी। अगर किसी को दो सप्ताह से अधिक समय तक खांसी आ रही है, शाम को पसीने के साथ बुखार होता है, तेजी से वजन घट रहा है, सीने में दर्द है, भूख नहीं लगती है और दवा लेने के बावजूद खांसी स्थाई तौर पर नहीं रुक रही है तो यह टीबी का लक्षण हो सकता है। ऐसे लक्षण वाला व्यक्ति मिलने पर उसकी सूचना ब्लॉक मुख्यालय तथा एनटीईपी स्टाफ को दी जाएगी।
एक नजर टीबी रोगियों पर
जनवरी 2020 से अब तक कुल 18,958 टीबी रोगी नोटिफाइड किए जा चुके हैं। इनके इलाज की सफलता दर 80 फीसदी रही। जिले में वर्ष 2020 में कुल 5474 टीबी रोगियों को निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रति माह की रकम उनके खाते में दी जा चुकी है।